भुत का शाया

दुर्गा पूजा का समय था। पूजा के 4 दिन बीत गए थे। हम सुबह मे Morning walk पे जाने के लिए तैयार हो रहे थे। उसी समय बगल के एक चाचा भी जा रहा था। हम भी उनके साथ चल दिए।दोनों आदमी जा रहे थे। चाचा ने बोला चलो पुराने डेरा से आते है और दोनों आदमी पुराने डेरा की ओर चल पड़े वहां पहुँचे तो चाचा ने भगवान से दुवा करने लगें की मेरा घर बन जाय। चाचा ने अपना हिस्सा गिरा दिया था। वहां पे नया घर बनाना चाहता था। इसके बाद चाचा ने अपने भाई के डेरा के गेट पे गया की अन्दर से किसी ने हु-हु की आवाज निकली हमें आश्चय नजर से चाचा की ओर देखा। चाचा ने बोला चलो University. हम दोनों आगे बढ़ने लगे। चाचा आगे आगे हम पीछे - पीछे यूनिवर्सिटी गेट पार किये। खाली जगह में जा रहे थे की हमारे शरीर में अचानक झुनझुनाहाट होने लगा और ऐसा लगा कोई रास्ता रोक रहा है। हमें अभास हुआ की कोई है।हमनें उसे मन - ही - मन अपने शरीर में समाजने को कहा और आगे बढ़ने लगे तब तक चाचा जी काफी आगे जा चुके थे। हमने तेजी से चलकर चाचा के पास पहुंचना चाहा पर जो ही आगे बढ़ा की हमारा दाया पौव भारी होने लगा। हमनें उस भारी पन एहसास को नहीं माना और धीरे - धीरे चाचा की ओर जाने लगा। यूनिवर्सिटी का दूसरा गेट पार किया उस ओर एक पुराना मंदिर था। हम और चाचा मंदिर के आगे पहुंच गये। चाचा के एक और दोस्त वहां मिल गया उसने चाचा का मोबाईल लेकर हमें दिया और बोला की इस मोबाईल से रिंग की आवाज नहीं आ रही है लो आवाज को चालू कर दो। चाचा और उनके दोस्त बेल के पौधे के लिए किसी से खुरपी मांगी उसका घर वहीं पे था। इधर हम ने मोबाईल का रिंग ऑन कर दिया और चाचा को मोबाइल दे दिए। खुरपी आया बेल का पौधा उखाड़ने की कोशिश किया गया पर पौधा नहीं उखड़ा क्योंकि बेल का पौधा किसी -न -किसी बेल के जर से निकला था। हम, चाचा घर आ गये। शाम में 7 बजे अचानक घर के LED बल्ब चमकने लगा। हमें सक हो गया की ये कोई भुत-परते का काम है। हमनें आवाज लगाई कौन है और चुप हो गये। उसी रात करीब 11बजे सोये अवस्था में एक आवाज सुनाई दी लगा कोई बड़ी चीज छत पे गिर गया है। हम उस आवाज को भी नजर अंदाज कर दिए। थोड़ी देर में हमें गला घूमने को कहा हमने गला घुमाया क्युकी वो भुत हमारे दिमाग़ को ही control कर लिया था। भुत जो इसरा करता था हम करते जाते थे। आवाज भी निकाल रहे थे। उस रात कई बार बरामदा पे आये तब तक भईया  भी जाग गया था और हमें नाटक करते देख रहा था। हम बरामदा पे कूद रहे थे,, कभी गिरते, कभी उठते। भईया काफी डर गया था और बाबूजी को फोन लगा दिया। बाबूजी ने बगल के किसी आदमी को घर जाने को कहा वो आया तब तक सुबह के 5 बज चुके थे। गेट पे खट-खट की आवाज आयी हमने गेट खोला तभी दिमाग़ हल्का हो गया। हम छत पे जाने लगें परंतु भाई और वो आदमी हमारा हाथ पकड़ लिया हम सोने चले गये। अब तक पापा मम्मी भी आ गया सब को लगा की बीमार पर गया। दिन में डाक्टर के पास ले गये। डाक्टर ने पागल डाक्टर के पास भेज दिया शाम को पीर बाबा के यहां भी ले गया। बाबा ने दाया हाथ में जंतर बांध दिया। शाम को घर पे आये पर कोई असर नहीं हुआ रात 9 बजे करीब फिर आवाज निकाले अब सब को लगा ये पागल हो गया है.। कुछ दिन तक भुत के साथ रहने का आदत हो गया था। फिर हमनें पूजा पाठ, माँ बैष्णवी का जाप करने लगें। घीरे धीरे भुत का शया हट गया।