व्यपारी और लोहे की तराजू

एक  गांव में एक व्यपारी रहता था। उस व्यपारी को कोई संतान नहीं था केवल उसके पत्नी ही परिवार में था। व्यपारी बूढा हो गया था। उसके पत्नी एक दिन बोला कहीं घूमने को चलते है।

एक दिन व्यपारी तिथयाटन जाने का सोचा। वो काफी गरीब था उसके पास एक टूटा घर था कीमती समान में एक लोहे का तराजू था उसने सोचा क्यू ना इस तराजू को अपने सेठ के पास रख दूँ।

व्यपारी सेठ के पास गया और बोला हम तिथयाटन घूमने को जा रहे है हमारे पास एक लोहे का तराजू है तबतक इसे रखिये वापस आने के बाद हम ले जाएगे। सेठ के यहां तराजू रख कर उसने पत्नी के साथ घूमने को चला गया।

कुछ दिन के बाद व्यपारी घूमकर वापस लौटा और उसने अपना तराजू लेने सेठ के पास पहुंचा। उसने सेठ से बोला हमारा तराजू दे दीजिए।

सेठ को तराजू पसंद आ गया था उसने उस लोहे के तराजू को अपने पास रखना चाहता था इसलिए सेठ ने व्यपारी से कहा की हम तराजू को संदूक में रख दिए थे परंतु उस तराजू को चूहा ने खा लिया।

सेठ की बात सुनकर व्यपारी को बहुत दुःख हुआ और वो बिना तराजू के घर वापस लौट गए। बिना तराजू के वह खाली रहने लगा व्यपार कैसे करते, उसने तराजू पाने का एक तरीका निकाला।

सेठ के एक छोटा लड़का था वो हमेशा दुकान पे ही रहता था एक दिन व्यपारी दुकान पे आया और सेठ से बोला हम आपके लडके को घुमाने ले जा रहे है। सेठ ने सोचा हमेशा ये दुकान पे रहता है घूमने से थोड़ा मन बहल जाएगा और व्यपारी को ले जाने को कहा।

उस छोटे लडके को लेकर व्यपारी जंगल चला गया और लडके को एक गुफा में बंद कर दिया। शाम हो गया सेठ व्यपारी को आने का इंतजार कर रहा था पर नहीं आया।

सेठ व्यपारी के घर गया तो देखा की व्यपारी घर पे है। सेठ ने लडके के बारे में पूछा तो व्यपारी ने बोला आपके लडके को चील ले के उड़ गया।

सेठ को व्यपारी के बातों पे बहुत गुस्सा आया। अगले दिन सेठ ने राजा के पास गया वहां सारी बात राजा को कहां, राजा ने व्यपारी को बुलाया और सेठ के लडके को लौटने को कहा।

व्यपारी ने भी राजा से लोहे की तराजू के बारे में कहा फिर राजा ने सेठ से उसका लोहे की तराजू देने को कहा, सेठ ने व्यपारी को तराजू दे दिया इसके बाद व्यपारी ने भी गुफा से सेठ के लडके को ला के दिया।



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