मुर्ख सियार

एक जंगल में दो सियार रहता था उसी जंगल से होकर राजा के सैनिक युद्ध जीतकर ढ़ोल नगारे के साथ वापस लौट रहे थे रात हो गयी थी इसलिए सबने उसी जंगल में रात भर के लिये डेरा जमा दिया।

आधी रात में जंगल में तूफ़ान आया। तूफ़ान इतना तेज था की सैनिको का एक डोल लुढ़कर दूर झारी में एक पेड़ से जा अटका। सुबह होते ही सब सैनिक चले गए।

ढ़ोल जिस पेड़ से अटका हुआ था उसका एक डाली डोल के पास ही लटका हुआ था जब हवा बहती डाली डोल से जाकर टकराती और उस से धम - धम की आवाज निकलती।

एक दिन सियार ढ़ोल की कुछ दुरी पर पेड़ की छाया में सो रहा था तभी हवा चली और ढ़ोल से धम धम की आवाज निकली सियार डर के दूर भगा। दूसरे दिन फिर वहीं घूम रहा था वैसे ही आवाज सुनी अब वो दूर से ही ढ़ोल को देखता रहता था।

सियार धम धम की आवाज का पता लगाने के लिए उसने झारी में छुप कर डोल को देख रहा था। ढ़ोल से सटे पेड़ पर से एक गिलहरी डोल पे जा कुदा और डोल पे ही खेलने लगा।

गिलहरी को देख सियार समझ गया की वो कोई हिसंक जानवर नहीं है। सियार डरते - डरते ढ़ोल के पास पहुंचा उसने देखा की ढ़ोल में दोनों तरफ से मुँह है और चमरी भी मोटी।

सियार बहुत ख़ुश हुआ और अपने माद में सियारी के पास जाकर बोला अब दावत के लिए तैयार हो जाओ हम ने एक मोटा शिकार खोजा है

इस पर सियारी बोला तुमने उसे मार के क्यू ना लाया। सियार बोला हम बेबकुफ़ थोड़े है उस पर हमला करता तो वो दूसरे दरबाजे से भाग नहीं जाता इसके लिए दो लोगो की जरूरत है।

सुबह सुबह दोनों ढ़ोल वाली झारी के तरफ निकला और दोनों ढ़ोल के दोनों सिरे पर बैठ गया और ढ़ोल में लगें चमड़ी को दांत से फारने लगा कुछ चमरी हटने के बाद उसने धीरे से ढ़ोल के अंदर हाथ डाला दोनों को कुछ नहीं मिला। सियार निराश हो गया।